जीने की कला❤️❤️❤️

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जीने की कला
    इंसानी फितरत भी अजब है। संसार में तरह- तरह के नमूने के लोग आपको मिलेंगे। कई बहुत ही स्पष्टवादी, हंशमुख ठहाके लगाकर हंसने हंसाने वाले, तो कई हर समय गंभीर, मातमी सूरत बनाए रहने वाले, अपने तक सीमित, काम या बिल्कुल ही नहीं के बराबर बोलने लोग वाले। यानी कि एक्स्ट्रावर्ड और इंट्रावर्ड किस्म के जीने की कला सीख पाना आसान नहीं है क्योंकि यह कोई सीधी राह, कोई हाईवे नहीं जिस जिंदगी की गाढ़ी आसानी से दौड़ती चली जाए। कदम कदम पर मुसीबतें है, रुकावटें हैं, हादसे है। फिर सुबह से रात तक कितने ही लोगों के साथ इंटरैक्ट करना पड़ता है। कभी इससे खुसी मिलती है कभी गम।
कम्युनिकेशन में कोताही न बरतें___
कई लोगों की आदत होती है बगैर बोले बताए वे आशा करते है कि दूसरा उनकी बात समझ लें। भला सोचिए वह दूसरा चाहे आपकी संतान हो, पति हो, पड़ोसी हो या नौकर कोई भगवान तो है नहीं जो अन्तर्यामी हो। आप जो चाहती है स्पष्ट कहें। नहीं कह सकती तो चाहत पूर्ण होने की उम्मीद भी छोड़ दें। यह ही तो है जो आपकी कुढ़न का कारण है।
आलोचना करना इतना बडा भी नहीं___
किसी की बुराई मत करो।आज यही हो रहा है हम लोग अपनी छवि की कैद में गिरफ्त होकर तनाव को पालने लगे हैं।पहले की औरतें जिन्हें आज की भाषा में अनपढ़ गंवार कहते है (जो कि सरासर गलत है )अपनी हम उम्रवालियो के साथ सास बहू की आलोचना करके मन की भड़ास निकल कर हल्की हो जाती थी लेकिन आज की डिप्लोमेट स्त्रियां ऐसा नहीं कर सकती। कुछ उनके पास समय का अभाव होता है कुछ प्रतिष्ठा का सवाल। आज की सिंथेटिक लाइफ में सिर्फ बनावट ही बनावट है। ना दिल की बातें होती है ना दिल तक पहुंचती है। कैलकुलेटेड दिमाग सिर्फ छक्के पंजो में लीन रहते है। भावनाओं को दबाया जाता है। भावनाओं का प्रदर्शन आज हकीकत जीवन में शर्मनाक माना जाने लगा है। इन्हें तो बस लोग पर्दे पर देखकर ही मन बहलाते है। मगर यह एक खतरनाक स्तिथि है। मैनर्स,डिसिप्लीन, कल्चर के फेर में वह सीधा सरल और सहज जीवन जीना भूल जाते हैं।
छवि को लेकर अति सजगता____
अक्सर होता यह है कि कुछ तो औरत को कुदरत ने नरम दिल बनाया है और कुछ इमेज को लेकर वे किसी को नाराज़ करने से डरती है। यह सब सर्वविदित तथ्य है कि हर कोई हर किसी को खुश नहीं रख सकता। यही प्रयत्न औरत के घुटते रहने का कारण बन जाता है। खुलकर विरोध ना कर पाने के कारण वह तनावग्रस्त रहने लगती है। आदर्श भारतीय नारी की छवि बस फिल्मों में ही संभव हैं प्रैक्टिकल ना होकर वह अकारण ही कई बार अपराध बोध पाल बैठती है। अनिच्छा से कार्य करना भी अपने आप में सजा से कम नहीं जिसे बेकसूर होने पर भी औरतें भुगतती है।
अपने को एजर्ट करें___
अपने  को कभी भी कमतर मा तौलें। अपनी अहमियत जानें। हीन भावना भीतर से आपको खोखला तो नहीं कर रही इस बात का ध्यान रखें। आपका अंतर्मन आपको गलत राय नहीं देगा इतना विश्वास आपको अपने पर होना चाहिए।
        आत्मविश्लेशण की आदत डालें। बोल्ड बनें, मगर तहजीब के दायरे में रहकर। पावरफुल व्यक्तित्व का अपना रूआब, अपनी गरिमा होती है, आपको कोई आसानी से टेकेन फार ग्रांटेड ना ले। यह आपको ख़ुद तय करना है जब आप गलत नहीं हैं तो कोई कैसे आपको गलत साबित कर सकता है। और कार्य है तो करने दें। आपका अपने पर यकीन ही आपका हौसला बुलंद रखेगा। फिर घुटन, कुढ़न जैसी मानसिक व्याधियां आपको नहीं घेर पाएंगी क्योंकि, उससे लड़ने के लिए आप के पास मजबूर अस्त्र हैं। जीवन में सबसे ज्यादा अहम है क्वालिटी ऑफ लाइफ। जो काम पैसों और साधनों में भी शानदार हो सकती है क्योंकि यह मन का खेल है। बाहरी चमक दमक पर कभी न जाएं "हर चीज जो चमकती है वह सोना नहीं होती " आप चीजों को कैसे कितना एंजॉय करती है यह आपके टेंपरामेंट पर निर्भर है। हंसने, खुश रहने और खुशी के मौकों को भरपूर एंजॉय करने की आदत डालें। और लास्ट बट नाट लीस्ट जीवन में सकारात्मक सोच अपनाएं। तभी आप औरों को यह कहती नज़र आएंगी अरे भई कुढ़ना,घुटते रहना ? यह जीना नहीं है।
___धन्यवाद!!!!!

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